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श्रीमती गंगाबाई गेंदालाल जी खेड़े

 

श्रीमती गंगाबाई गेंदालाल जी खेड़े

 1914 - 1998 गोत्र - मुदगिल

    श्रीमती गंगा बाई का जन्म  सन् 1914 में खण्डवा में हुआ। इनके पिता का नाम श्री रामरतनजी साध तथा माता का नाम श्रीमती दमयन्ति बाई था। इनके पिता खेती बाड़ी से समृध्द थे।वे मुंशी थे और मुंशीजी नाम से जाने जाते थे।

   आप अपनी तीन बहनों और दो भाईयों में सबसे बड़ी  थी ।आप बचपन से ही धार्मिक स्वभाव की और ईश्वर में गहरी आस्था रखने वाली थी। संगीत का भी बहुत शौक था।बहुत ही कुशाग्र बुद्धि की थी।

   जब आप पढ़ती थी तब से ही गाने का भी बहुत शौक था और समय समय पर अपने विद्यालय में कई गीत और राष्ट्रीय गीत गाती थी।सन् 24,25में राष्ट्रीय गीत एवं भजन गाने में अपने विद्यालय का प्रतिनिधित्व करने के लिए बॉम्बे आकाशवाणी पर भी गाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।आप कविताएं और लेख भी लिखती थी।

    सुप्रसिद्ध कवि श्री माखनलाल जी चतुर्वेदी आपके पिता के मित्र थे जो आपको घर पर पढाने आते थे।

    आप कस्तूरबा स्कूल की छात्रा रही है और कई बार गाँधी जी के आगमन पर आपने स्वागत गीत और भजनों की प्रस्तुति दी और गाँधी जी ने आपको पुरस्कृत भी किया।

    पढ़ाई में हमेशा से होशियार थी।आपको हिंदी मराठी और अंग्रेजी तीन भाषाओं का ज्ञान था।आपका शिक्षिका का भी ऑर्डर आ गया था लेकिन पिताजी नोकरी के पक्ष में नही थे।

   आपका विवाह 15 वर्ष की उम्र में रहाड़कोट निवासी श्री तुकारामजी खेड़े के छोटे बेटे श्री गेंदालाल जी के साथ हुआ और फिर आप खण्डवा से एक छोटे से गाँव में आ गई।लेकिन वहाँ भी आकर वहाँ की परंपरा और रहन सहन को बड़ी सहजता से अपनाते हुए उस वातावरण में अपने को ढाल लिया।अपने विनम्र और स्नेही स्वभाव से सबके मन को जीत लिया आप अपने पति को देवता के समान मानती थी।आपके चार पुत्र और तीन पुत्रिया है और नाती पोतों से भरापूरा परिवार है। सभी को बहुत प्यार और स्नेह करती थी।

    आप सिलाई,बुनाई,कढ़ाई, रंगोली,मांडने और भित्ति चित्र में भी निपुर्ण थी साथ ही अपने पारम्परिक त्यौहारों के चित्र भी बहुत ही सुंदर बनाती थी।

    आपकी यह विशेषता थी कि आप कभी भी किसी भी चीज का विकल्प निकाल लेती थी।उस समय बुनाई के लिए सलाई नही मिलती थी तो आप तार या लकड़ी को उस आकर में कर के भी स्वेटर बना लेती थी,उसी प्रकार सिलाई भी मशीन न होने पर भी हाथ से ही इस ढंग से सिलाई करती थी कि पता ही नही चलता था कि हाथ से सीला हुआ है।उस समय गाँव के गुजर लोग विवाह में लग्न के समय काप की बिना कटी हुई कांचली पहनाते थे तो वह आप बहुत ही बढ़िया बना देती थी, बच्चों के जन्म के समय जो पगल्या बनाए जाते है वह भी आप बहुत सुंदर बनाती थी।

   आप पाककला में भी बहुत ही सिध्द हस्त थी।

   आपके साथ आपके परिवार के अलावा आपकी ननद और उनके पाँच बच्चे भी  रहते थे पर आपने अपने भांजे-भांजियों को अपने बच्चों से ज्यादा स्नेह दिया। आप के स्नेह को याद कर के उन्हें आज भी आँसू आ जाते है। 

    एक बार की बात है जब गाँव में बहुत मच्छर हो गए थे 

 तो आपने पुरानी पगड़ियों की इतनी बढिया मच्छर दानी बना दी जिसका कोई जवाब नही था।

                              

    आपके स्नेही और विनम्र स्वभाव से आपका  सभी बहुत मान सम्मान करते थे।

    मेरी दादी हमेशा कहती थी कि ईश्वर पर हमेशा भरोसा रखो व अपने काम को पूरी लगन और ईमानदारी से करो और किसी भी परिस्थिति से घबराओ मत,उसका डट कर मुकाबला करो तुम्हारी जीत अवश्य होगी।

     हमेशा राम नाम का जाप करती रहती थी,रामायण के अधिकांश कांड उन्हें मौखिक  थे।वह नित्य प्रातः 4  बजे उठकर भजन करती थी।

    मेरी प्यारी दादी माँ के बारे में लिखते हुए मुझे बहुत गर्व हो रहा है कि मैं ऐसी सर्वगुण सम्पन्न ,बहुमुखी प्रतिभा की धनी दादी की पोती हूँ।

    22 नवम्बर 1998 को आपका स्वर्गवास हो गया

   पूज्यनीय दादीजी को शत शत नमन🙏🙏

   श्रीमती रीना अश्विन शुक्ला

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