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श्री गजानन पुरे सिमरोल

 परम पूजनीय पिता श्री गजानन पुरे तृतीय पुण्यतिथि के अवसर पर सादर श्रद्धांजलि
    परम पूजनीय मेरे पिताजी स्वर्गीय   श्री गजानन पुरे पिता श्री कृष्ण पूरे निवास सिमरोल जिला इंदौर म. प्रदेश जन्म 25 .9 .1925 एवं मेरी माता जी स्वर्गीय श्रीमती गोदावरी देवी क्रमशः दिनांक 01/02/2018 व 03/04/2016 का परमपिता परमात्मा के साथ एकाकार हो गया। मेरे पिताजी का व्यक्तित्व सरल, समर्पण, नम्रता, सहनशीलता, सादगी, मितभाषी, मृदुभाषी जैसे सभी गुणों का समुच्चय जिनमें था।साहित्य प्रेमी होते हुए सामाजिक पत्रिकाओ सहितकई पत्रिकाओं में लेख लिखते थे छपते थे।जीवन के अंतिम समय तक भि लेखन कार्य चलता रहा।कई साहित्यिक मित्र भी थे जो जीवन भर एक दूसरे का साथ निभाते रहे। ऐसा एक विरल व्यक्तित्व पोस्टग्रेजुएट करते हुए साधारण सा शासकीय अध्यापकीय जीवन शुरू किया धीरे-धीरे  प्रमोशन होते गये सिमरोल हायर सेकेंडरी स्कूल की भी कमान संभाली कई बार ऐसे अवसर आए कि ग्राम हरसोला में पोस्टिंग होते हुए परीक्षा चल रही थी रास्ते कच्चे थे पानी गिरने पर साइकिल चलना संभव नहीं थी तो(सायकिल रास्ते में रख कर) दौड़कर स्कूल पहुंचे और परीक्षा का कार्य पूर्ण किया सद्गुणों का समुच्चय कहा जाए ऐसे थे पिताजी। सिमरोल ट्रांसफर होने पर स्कूल में पढ़ने वाले इच्छुक विद्यार्थी घर पर बिना ट्यूशन फीस दिए (घर पर कभी भी ट्यूशन फीस  नहीं ली)पढ़ने आते थे सभी ऐसेओतप्रोत हो गए कि घर परिवार के मेंबर बन कर रहने लगे । दूसरे का ख्याल रखना ही मेरी स्वस्थ्यता है,गुरु शिष्य में कोई फर्क नही था।
    धरती पर खिलने वाली हरियाली का यश भले ही हम बारिश को दें परंतु उसके पीछे बादलों ने स्वयं का अस्तित्व समर्पण कर दिया यह हम कैसे भूल सकते हैं उस मेघ को कृतज्ञता से वंदन नहीं किया जाए तो बारिश को भी गलत लगेगा। सब का ख्याल रखने के साथ अपने परिवार परिजनों का भी ख्याल रखते थे सबसे हंसमुख चेहरे व आत्मीयता से बोलने के साथ घर परिवार की कुशल क्षेम जरूर पूछते थे। याद रख कर जन्मदिन और लग्न दिन की शुभेच्छा जरूर देते थे। समाज का व्यक्ति हो, नौकर या ड्राइवर या कोई रोज मिलने वाला व्यक्ति उसके साथ कुछ समय जरूर बात करते थे।1983 सेवानिवृत्ति के बाद आध्यात्म में रुद्राभिषेक, सप्तशती पाठ, नियमित पूजा पाठ करके ही दूध, जल ग्रहण कर 1 घंटे बाद भोजन प्रसादी ग्रहण करते थे घर के पीछे ही एक बगीचे में लगभग बाड़ा है आश्रम जैसा बनाकर हरियाली पेड़ पौधे ,जैविक सब्जियां उगा कर उनका ही नैवेद्य भगवान को रोज लगता था फिर स्वयं व परिवर अर्पण करते हैं।। अपना अधिकतम समय भी मेहनत कर बगीचा संवारने में बिताते थे। उन्होंने समग्र जीवन, समय, शक्ति जनहित में ही अर्पण कर दिया यही उनकी निरहंकारी, निरकांक्षी मानवता है। पिताजी को आग्रह  पसंद नही था। न ही श्रेय लेना पसंद था। 
जीवनपर्यन्त स्वावलंबी रहे ।94 वर्ष की उम्र में भी अपने सारे काम स्वयं करते थे , प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति को अपने जीवनमे अपना कर एलोपैथी चिकित्सा कभी नहीं की। प्रकृतिक चिकित्सा के साहित्य मंगवाकर उसका सतत अध्ययन कर अपने व परिवार की चिकित्सा करते।
       उनकी अप्रतिम शालीनता, धैर्यता, समर्पण। उनकी एक निष्ठता। उनकी सोचप्रेममयी व पवित्र। निर्मल उनकी दृष्टि ।उल्लास पूर्ण, ऊर्जा पूर्ण एवं मीठीउनकी भाषा बोली । तेज पूर्ण, सौहाद्रपूर्ण उनकी जीवनशैली, सादा जीवन उच्च विचार, अद्भुत कर्तव्यनिष्ठा।कर्तव्य परायणता।समय के पूर्ण पाबन्ध।आतिथ्य के शौकीन।
विद्यार्थियों की पुस्तकों,स्कूल फीस।गरीब असहायों के मददगार।सामाजिक संस्थाओं में दान उनका शोक था। 
नर्मदे हर।
शैलेन्द्र पुरे

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