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श्री विनायकराव जी गीते

स्व. विनायकराव जी गीते मूल निवास  सुलगांव त.  पुनासा जिला खंडवा का स्मरण आता है जिनका आदर्श जीवन हमारे परिवार के लिए प्रेरणादायक रहा है । उनका जन्म संभवतः  सन 1906 में हुआ, वे तीन भाइयों में सबसे बड़े थे । धीर गंभीर प्रकृति के धनी वे अनुशासनप्रिय, सिद्धांत प्रिय , न्यायप्रिय,पारिवारिक एवं सामाजिक व्यक्ति थे  परोपकार एवं सेवा भावना से उनका जीवन ओत प्रोत रहा ।

वे प्रारंभ में  पटवारी की नौकरी मे रहे  किन्तु बहुत जल्दी उन्होंने नौकरी छोड़ दी । वे बच्चों को बहुत प्रेम करते थे । मैंने उन्हें कभी क्रोधित होते हुए नहीं देखा न ही उन्होंने किसी को प्रताड़ित किया  फिर भी उनका प्रभाव इतना था कि घर में आते ही सारे सदस्य स्वतः अनुशासित हो जाते थे , घर क्या पूरे गांव एवम् समाज में उनका ऐसा ही प्रभाव था । वे अंत समय तक न्याय पंचायत एवं ग्राम पंचायत के सदस्य बने रहे । तत्समय का समाज का समाचार पत्र  नार्मदीय/नार्मदीय जगत मेरे घर आता था  जिसका पठन वे करते थे । नित्यप्रति शाम को विष्णुसहस्त्रनाम एवम् नर्मदाष्टक का पाठ वे जोर  जोर से करते थे उनके सानिध्य में बैठने से मुझे भी 10_12 वर्ष  की उम्र मे ही ये पाठ कंथस्थ हो गए ।नवजवान बेटे एवम् दामाद के आकस्मिक निधन का दुख भी उन्हें अपने कर्त्तव्यों से विचलित नहीं कर पाया । हर छोटे बड़े को वे यथोचित सम्मान देते थे ।तिज त्योहार मनाकर बेटियां जब घर से विदा होती थी तो वे स्वयं उनके पैर छूते थे उनका यह व्यवहार प्रेरणास्पद एवम् अनुकरणीय था । उनके व्यक्तित्व के प्रभाव से आज भी मेरा परिवार प्रेम  एवम् एकता के सूत्र में बंधा हुआ है। मुझे ऐसा लगता है कि वे अपनी मृत्यु के बारे में भी जान गए थे । एक गांव से भाईयो के बीच बटवारा  करके जब वे लौटे तो उनका स्वास्थ्य बिगड़ा हुआ ही था उन्हें तेज बुखार था एवम् ठंड लग रही थी उस रात उन्होंने मुझसे बहुत सेवा करवाई और बस यही रट लगाते रहे "अब हम जायेगे अब नहीं रहेंगे "और सचमुच में उस रात उन्हें खून की उल्टियां हुई और 8/10दिन बाद एम व्हाय अस्पताल इंदौर में 21फरवरी1968को 62 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली । 13 वर्ष की उम्र में पहली बार मै 20 कि. मी.पैदल चलकर  गृहगांव से ओम्कारेश्वर उनकी अंत्येष्ठि में सम्मिलित हुआ । 

ये सब लिखते लिखते ही मेरी आंखे नम हो रही है मुझे ऐसा लगा कि शायद वे   जल्दी चले गए वे अधिक उम्र तक जीवित रहते तो यह परिवार के लिए लाभकारी होता। फिर भी संतोष है कि हम परिवार में उनके द्वारा पैदा किए गए " प्रेम, भाईचारा एवम् एकता को अभी तक जिंदा रखे है  । 

ऐसे पितृ पुरुष के पुण्य स्मरण पर विनम्र भावभीनी श्रद्धांजलि। शत शत नमन ।

  .कल्याण गीते एवं समस्त गीते परिवार ।

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