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श्री महेंद्र कुमार श्रीधर शर्मा

मेरे पिताजी स्व. प्रोफेसर श्री महेंद्र कुमार श्रीधर का जन्म महू में पास ग्राम कोदरिया में 14 दिसम्बर 1948 में हुआ ।

शुरू से ही ओजस्वी ओर तेजस्वी होने के कारण उन्होंने खूब अध्ययन किया ।

गरीब परिस्थितियों के बावजुद मंदिरों में दियों के उजाले में पढ़ाई की ओर हर क्लास में अव्वल ही रहे और सम्पूर्ण परिवार और समाज मे प्रोफेसर बन के अपनी ख्याति फैलाई

हिंदी और संस्कृत में पोस्ट ग्रेजुएशन करते ही उन्हें आगर मालवा में सरकारी कॉलेज में प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति मिल गयी और उनका सफर शुरू हुआ ।

आगर के बाद रायबरेली, इंदौर फिर अंत मे महू डिग्री कॉलेज में उनकी पोस्टिंग रही ।

स्वभाव से बेहद धैर्य, गंभीर, ज्ञान के साथ उनके चेहरे का तेज और ओजस्वी वाणी, प्रखर वक्ता, लेखक, कवि ओर भी न जाने कितनी विधाओं में पारंगत थे,

समाज, परिवार में उनका बड़ा मान सम्मान और इज्जत थी, जब भी कहीं ग्रुप में खड़े होते कब घंटों निकल जाते मालूम ही नहीं पड़ता था ।

उनके हजारो अनुयायी ओर चाहने वाले थे, जिससे एक बार बात कर लें उनके चहेते बन जाते थे। 

कॉलेज से आने के बाद उनसे मिलने वालों का तांता लगा रहता था, इतने सारे विषयों पर लेख ओर कविताएं लिखी की पढ़ लें तो स्तब्ध ही रह जाएं । उनका पास ज्ञान का इतना अथाह भंडार था कि कोई बोल ही नहीं पाता था उनके  सामने ।

बहुत ही कम उम्र में इस संसार को विदा कर गए और पीछे छोड़ गए अनगिनत आंसू ओर यादें ।

4 दिसम्बर 1992 को हम सबको छोड़ कर अब वो हमारे भगवान और पितृ पुरुष बन गए और हमें अकेला छोड़ गए ।

(हेमंत शर्मा )


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Mahendra sharma kodriya

3 comments:

  1. प्रो महेंद्र शर्मा जी की विशिष्टता थी कि बड़े ही सरल रूप में हास परिहास बिखेरते थे। बड़ी सुंदर कविताएं और क्षणिकाएं लिखते थे।
    हिंदी साहित्य ओर उसके इतिहास पर गहरा ज्ञान रखते थे ।
    उनकी निजी लाइब्रेरी भी थी, एक बार एक किताब पर बात चल रही थी , धीरे से उठे, रैक पर किताबें इधर उधर की और चर्चा वाली किताब निकालकर मेरे हाथ मे रख दी और मुस्कुराकर बोले एक बार और पढ़ लो।
    गहन चिंतक सरस्वती पुत्र को श्रद्धांजलि।
    -रवि नारमदेव

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    1. पापा को भावभीनी श्रद्धांजलि। पापा का आशीर्वाद हमेशा हमारे साथ रहे ।

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  2. *💐🙏🏻पितृ पक्ष पर श्रद्दांजलि 🙏🏻💐*

    कोदरिया ग्रामे एक बालक जन्मा
    चहुँ ओर बिखरा हर्ष ओर पुनिता,

    सुंदर मुख पर तेज अपारा,
    तेजस्वी निकला ये बालक प्यारा,

    खुद के दम पर करी पढ़ाई
    पूरा गांव करता था बढ़ाई,

    थे दुख जीवन मे कई सारे
    पर सबको छोड़ पहुंच गए किनारे

    माँ की ममता ने दिया सहारा,
    लगन मेहनत ने सबको हराया

    हर विधा को आजमाया,
    संगीत, गायन, लेखन को मुख्य बनाया,

    कभी तबले ओर मृदंग को बजाया,
    तो कभी बेजों को भी आजमाया,

    बन कर शिक्षक अपना भाग्य जमाया,
    हर छात्र को मंजिल तक पहुंचाया ।

    लिखी कविता ओर लेख अपार
    कईं बच्चों का किया उद्धार ।

    लेखन का था उनसे नाता,
    लिखना फिर उसे गुनगुनाना,

    थे वो ज्ञान का अपार भंडार,
    सभी विषयों के ज्ञाता ओर उनके अनुयायी थे हजार ।

    भोले की भक्ति के थे प्रकांड पंडित,
    उनकी पूजा कभी न होती थी खंडित ।

    बैजनाथ बाबा से था उनका नाता,
    एक बार उन्हें कपि ने रूप दिखावा ।

    बातों ही बातों में ही मोह लेते
    बन जाते थे वो सब के चहेते,

    जब बैठें कभी लेखन पढ़न को
    लगे रहो उनके हाव भाव देखन को ।

    फिर अचानक थम गए थे मृदंग ओर ढोल,
    बन्द हो गए कविता और उनके बोल ।

    देवताओं ने असमय स्वर्ग बुलाया
    हम छोटे बच्चों को बिलखाया,

    है प्रभु तुम उन्हें पितृ बनावा,
    मिले फिर एक मौका,
    तो में पुनः उन्हें हृदय लगावा ।

    हेमन्त शर्मा 🙏🏻

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