जन्म सन 1901 में तिथि से पौष माह की शुक्ल पक्ष पूर्णिमा
आप खरगोन के मूल निवासी थे। खरगोन शहर के जमीदार मोहल्ले में मुरली मनोहर मन्दिर नाम से एक प्रसिद्ध कृष्ण मंदिर है। वहाँ के पुजारी पण्डित नत्थू लालजी शुक्ल, जो कि भागवत कथा वाचक के नाम से जाने जाते थे, के तीन लड़के और एक लड़की थी।नारायणराव जी उनके मंझले पुत्र थे। इनका जन्म सन 1901 में, तिथि से पौष माह की शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को हुआ था। माता का नाम श्रीमती नथी बाई था।
बचपन कृष्ण मंदिर में ही बीता।इस कारण ईश्वर में आस्था मजबूत थी।हर त्यौहार विशाल उत्सव के रुप में मनाये जाते थे।घर परिवार का वातावरण पूर्णरूप से धार्मिक था। ऐसे ही माहौल में बचपन बीता।15 बरस की उमर में शादी हो गई। पत्नी का नाम श्रीमती पार्वती बाई था जो कि भीकनगांव तहसील के एक कस्बे, खुडग़ांव के बिल्लोरे परिवार की बेटी थी।शादी केबाद भी आपने अपनी पढ़ाई जारी रखी।
आपकी दसवीं तक की शिक्षा खरगोन में हुई।आगे की पढ़ाई इंदौर में रहकर की।वहाँ पर बाफना होस्टल में रहे।वहाँ अपना सारा काम हाथ से करना,खाना भी खुद बनाना,और साथ ही ट्यूशन भी करते थे।कट्टर इतने कि बाहर का कुछ नहीं खाते थे।इस प्रकार इंदौर में करीब सात साल रहकर इंटर, और बी,ए, एल.एल. बी.पूर्ण किया।चुस्ती फुर्ती इतनी कि रोज पैदल जाना आना करते थे।कहीं भी जाना हो,उस समय मेँ साइकिल का चलन था लेकिन कभी भी साईकिल की सवारी नहीँ की।जीवन पर्यंत तक।
आपने सन1926 में वकालत की शुरूआत की। खरगोन शहर में पहले नार्मदीय समाज के वकील बनने का गौरव प्राप्त किया।पेशे के प्रति पूर्णतः समर्पित और ईमानदार।कभी भी झुठे मुकदमें नहीँ लिये।ऐसा कोई व्यक्ति कभी आ भी जाता था तो उसे समझा बुझा कर मुक़दमा लेने से मना कर कर देते थे।दयालु इतने कि कोई गरीब हो,कृषक हो,अगर मुकदमा जीतने के बदले पैसे न दे पाए और अपनी जमीन का कुछ भाग देंने की पेशकश करें तो कभी भी वकील साहब ने इसका फायदा नहीं उठाया और यही कह देते थे कि जब पैसा आये तब लौटा जाना।कभी किसी से नहीं देते बना तो जितना दिया उसी में संतोष किया।किसी पर कभी भी पैसों के लिए दबाव नहीं बनाया।उस जमाने में आपके समकक्ष वकीलों में श्रीरामनाथजी बिल्लोरे,श्रीनारायनरावजी सोहनी,श्रीगणपति भटोरे वकील ये भी सब नार्मदीय समाज के ही थे।सबके आपस में दोस्ताना सम्बन्ध थे।खरगोन में महाजन समाज है,ज्यादा से ज्यादा महाजन आपके पक्षकार थे।आपने करीब बावन साल तक वकालत करी।मध्य प्रदेष के मुख्य न्यायाधीश के द्वारा, वकील साहब का सम्मान भी हुआ था।
आपका सामाजिक दायरा भी विशाल था। खरगौन की नार्मदीय धर्मशाला के अध्यक्ष भी कुछ समय रहे उनकी देखरेख में सुधारकार्य भी हुये।समाज के गणेशउत्सवों में कार्यक्रमों के लिये नाटक,गाने, लिखते थे,उस समय की तात्कालिक परिस्थितियों पर,रूढ़ियों पर, और मंचन भी करवाते थे।समाजजन हो या अन्य समाज,सभी के दुख सुख में उपस्थित हो जाते थे।
आप एक भरे पूरे परिवार के मुखिया थे। आपकी पांच पुत्रियाँ और एक पुत्र थे।नाती पोतों से सम्पन्न परिवार था।अपने बच्चों के साथ बच्चे बन जाते थे भौरी खेलना शौक में शामिल था। हारमोनियम बजाते थे,संगीत सुनने के शौकीन थे,शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम भी पसन्द करते थे। ससुराल में एक साले साहब और तीन सालियां थी।ससुरजी शादी से पहले ही नहीं रहे थे।
सुडौल कद काठी के,गौरवर्ण,गठीला शरीर,चलते क्या थे मानो दौड़ रहे हो। प्रभावशाली व्यक्तित्व,और स्वभाव ऐसा कि " ना कोउ से दोस्ती, ना कोउ से बैर "
सरल सौम्य ममत्व से भरपूर--आंखों से ही स्नेह की बरसात
ऐसे विरले व्यक्तित्व को स्नेहिल नमन
श्री नारायनरावजी शुक्ल का स्वर्गवास दि. 8-6-89 तिथि - ज्येष्ठ की शुक्लपक्ष पंचमी को हुआ था।
(श्रीमती प्रभा मोहन शुक्ल )
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narayan rao ji shukla , khargone , murli mandir
नानाजी नामी वकील थे, खरगोन जिले के पहले नार्मदीय लॉ ग्रेजुएट।
ReplyDeleteकभी गलत या झूठे की पैरवी नही की।
आदमी पहचानने में माहिर थे अव्वल दर्जे के ईमानदार भी, एक बार नगर के धनी ने उन्हें बड़ा धन दिया और कहा कि सुपात्र को दिया दान ही पुण्य होता है अतः आप जरूरत मन्द सुपात्र को मेरी ओर से दान दिया करें।
रा स्व संघ के जिला सरकार्यवाहक (उच्च पदाधिकारी) थे और मुस्लिम समाज मे भी बड़ा सम्मान था, दंगो के समय नानाजी जब शांति कायम करने निकलते थे, पुलिस भी दंग रह जाती थी देखकर की मुस्लिम मोहल्ले में भी वकील साब आगे होते तो एक पत्थर भी कोई नही फेंकता था।
बहुत से मामलों में नानाजी दोनों पक्ष को बुलाकर समझाते और समझौता करा देते । कोर्ट कचहरी से बचे लोग बहुत मान सम्मान देते थे।
नानाजी के यहाँ एक मेरे हाथ एक डिक्शनरी लगी
सँस्कृत-इंग्लिश की मै तो हैरान हो गया देखकर। पूछने पर बताया बेटा आरएसएस के केंद्रीय लोगों से संस्कृत में बात होती है और बहुत से जजों से केवल अंग्रेजी में।
ऐसे पुनीत व्यक्ति का नाती होना सचमुच बड़े गर्व की बात है
एक सच्चे गांधीवादी को प्रणाम
-रवि नारमदेव